affiliate marketing Hindi Urdu Sher O Shayari And SMS: इक इंतज़ार सा था अब नज़र में वो भी नहीं..................

Wednesday, 18 May 2011

इक इंतज़ार सा था अब नज़र में वो भी नहीं..................


इक इंतज़ार सा था अब नज़र में वो भी नहीं,सफ़र में मरने की फुर्सत थी घर में वो भी नही,ज़रा मलाल की ज़ुल्मत को टालने के लिए,कई ख़याल थे अब तो असर में वो भी नहीं,जो संग ओ खार थे मेरी ही गर्दिशों तक थे,मैं रह -गुज़र में नहीं रह-गुज़र में वो भी नहीं,थे चश्म-ए-बाम नगर में अजब तुलू के रंग,वो इक निशात-ए-सहर था सहर में वो भी नही,रहे न कुछ भी मगर ये कैफ क्या कम है,जिस आगही की कमी थी हुनर में वो भी नहीं

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समा बदल न जाए,न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए ,मेरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए ,मेरा जाम छूनेवाले तेरा हाथ जल न जाए,अभी रात कुछ है बाकी न उठा नकाब साकी,तेरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर संभल न जाए,मेरी ज़िंदगी के मालिक मेरे दिल पे हाथ रखना,तेरे आने की खुशी में मेरा दम निकल न जाए , मुझे फूँकने से पहले मेरा दिल निकाल लेना , ये किसी की है अमानत कहीं साथ जल न जाए

रात आई है बालाओं से रिहाई देगी, अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी,वक़्त गुज़रा है पर मौसम नहीं बदला यारो, ऎसी गर्दिश है ज़मीन खुद भी दुहाई देगी,ये धुन्दलाका सा जो है उस को गनीमत जानो,देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी,दिल जो टूटेगा तो इक तुरफा तमाशा होगा ,कितने आईनों में ये शक्ल दिखाई देगी ,साथ के घर में बड़ा शोर बरपा है 'लवमीत',कोई आयेगा तो दस्तक न सुनाई देगी



जिस तरह की हैं ये दीवारें ये दर जैसा भी है, सर छिपाने को मयस्सर तो है घर जैसा भी है,उस को मुझे से मुझ को उस से निस्बतें है बेस्गुमार, मेरी चाहत का है महावर ये नगर जैसा भी है, चल पडा हूँ शौक़ ए बेपरवाह को मुर्शद मान कर,रास्ता पुरपेच है या पुर्खतर जैसा भी है ,सब गवारा है थकन सारी दुखन सारी चुभन,एक खुश्बू के लिए है ये सफ़र जैसा भी है,वो तो है मखसूस इक तेरी मोहब्बत के लिए,तेरा 'लवमीत' बाहुनर या बेहुनर जैसा भी है.

Hindi Shayari..............Aslam

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