जब जब आंख में आंसू आए
तब तब लब ज्यादा मुस्काए
नहीं संभाला उसने आकर
हम ठोकर खाकर पछताए
कितने भोलेपन में हमने
इक पत्थर पे फूल चढाए
चाहत के संदेसों संग अब
रोज कबूतर कौन उडाए
नाम किसी का अपने दिल पर
कौन लिखे और कौन मिटाए
वो था इक खाली पैमाना
देख जिसे मयकश ललचाए
वक्त बदल ना पाये अपना
खुद को ही अब बदला जाए
कुछ तो दुनियादारी सीखो
कौन ‘Aslam’ तुमको समझाए--